जब भी हमें कोई बुरी आदत को छोड़ना हैं। खुद से बस ये चार सवाल करना होगा।
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कैसे हम इसे अदृश्य बना सकते हैं ?
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कैसे हम इसे अनाकर्षक बना सकते हैं ?
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कैसे हम इसे मुश्किल बना सकते हैं ?
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कैसे हम इसे असन्तुष्टिदायक बना सकते हैं ?
बुरी आदतों के बुरी परिणाम देर से मिलते हैं। जबकि इससे पुरस्कार या फिर मज़ा तुरंत मिलता हैं। अगर आज कोई सिगरेट पियेगा, तो उसे कुछ साल बाद जाकर बीमारी लग सकती हैं। लेकिन इससे उनको तुरंत तनाव से राहत मिल जाता हैं।
ठीक इसी तरह ज़्यादा खाना लम्बे समय में हमारें लिए हानिकारक होता हैं। लेकिन इससे हमे उस पल के लिए तुरंत संतुष्टि मिल जाता हैं।
अच्छी आदतों के साथ इसका ठीक उल्टा होता हैं – इससे तुरंत सज़ा मिलती हैं, फिर कुछ महीनों या साल बाद जाकर मज़ा मिलता हैं।
अगर आज हम marketing को अच्छे से समझने के लिए आर्टिकल्स, बुक्स पढ़ते हैं, तो कल से ही हम तगड़ा मार्केटर नहीं बन जाएंगे। इसमें समय लगेगा। फ़टाफ़ट से कभी अच्छी आदतों के रिजल्ट नहीं मिलता। फ़टाफ़ट से कभी कुछ नहीं होता हैं, ये तरीक़ा ठीक नहीं हैं।
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बुरी आदत छोड़ने का पहला कदम: संकेत को अदृश्य बनाए !
जब हमें कोई आदत पड़ जाती हैं, तो उसे भुला पाना लगभग असंभव हो जाता हैं। वही पर किसी भी बुरी आदत को ख़त्म करने का एक व्यवहारिक तरीक़ा भी हैं, कि हम इसे उत्पन्न करने वालें संकेत से नाता तोड़ ले।
एक बाहरी संकेत किसी भी बुरी आदत को दोहराने की हमारें अंदर प्रवल लालसा जगा देती हैं। जब भी हम किसी चीज़ पर गौर करते हैं, तुरंत हम उसे चाहने लगते हैं। चॉकलेट देखते ही हमें खाने का मन करता हैं।
इसीलिए हम संकेत को दूर करके व्यवहार को शुरआत में ही रोक सकते हैं।
- अगर फोन हमें बार-बार काम से डिस्ट्रक्ट करते हैं, तो काम के दौरान हम फोन को दूसरे जगह पर रखके आ सकते हैं।
- अगर किचन में जाते ही मीठा खाने की आदत हैं, तो मिठाई के डिब्बे को बक्से में रख सकते हैं। जिससे हम इसे तुरंत नहीं देखेंगे और हमारा मिठाई का consumtion कम हो जाएगा।
दूसरा कदम: लालसा को अनाकर्षक बनाए !! सिगरेट छोड़ने का तरीक़ा
हमारा दिमाग किसी भी काम को करने से पहले एक भविष्यवाणी करते हैं। ये हमारें अतीत के ज्ञान के ऊपर निर्भर करती हैं। और हमारा व्यवहार इन्ही भविष्यवाणियों पर निर्भर करती हैं।
जैसे दो लोग एक ही सिगरेट को देखते हैं। एक को उसे देखकर पीने का मन करता हैं। दूसरा उसके बदबू से दूर भाग जाता हैं। क्युकी एक के दिमाग़ में इसको लेकर stress से राहत मिलता हैं, मज़ा आता हैं – ये सब इनफार्मेशन भरा हैं। वही पर दूसरे के दिमाग में इसको लेकर अलग इनफार्मेशन भरा हैं।
अगर हमे कोई भी बुरी आदत को छोड़ना हैं, तो इससे मिलने वाले बुरे परिणामों को दिमाग में भरना पड़ेगा। अगर किसीको सिगरेट की लट लगी हुई हैं। और उनको बार-बार ऐसी बातें सुनने को मिलता हैं।
- आप सोचते हो कि आप कुछ छोड़ रहे हो, लेकिन आप कोई चीज़ नहीं छोड़ रहे हो। क्युकी सिगरेट आपके लिए कुछ नहीं करती हैं।
- आप सोचते हो कि सोशल बनने के लिए सिगरेट पीना ज़रूरी हैं। पर ऐसा नहीं हैं, बिना सिगरेट पिए भी आप सोशल बन सकते हो।
- आप सोचते हो कि सिगरेट पीने से तनाव कम होता हैं। पर असल में ऐसा नहीं हैं, इससे आपके नर्ब्ज़ नष्ट होते हैं।
बार-बार इसप्रकार के बातें सुनने के कारण उनका दिमाग सिगरेट से मिलने वाले बुरे परिणामों से reconditioning हो सकता हैं।
तीसरा कदम: प्रतिक्रिया को मुश्किल बनाए !
सन 1830 की गर्मीयो में एक witter के सामने असंभव सी डेडलाइन आ गई थी। बारह महीनें पहले इस लेखक ने अपने प्रकाशक को एक नई पुस्तक देने का वादा किया था। लेकिन पुस्तक लिखने के बजाय, उन्होंने पूरा साल दूसरे प्रॉजेक्ट करने में और आलस करने में बिता दिए। फिर प्रकाशक ने गुस्से में आकर उन्हें सिर्फ़ 6 महीनें से भी कम समय का डेडलाइन दे दिया। अब उन्हें फ़रवरी 1831 तक पुस्तक पूरी करनी थी।
लेखक ने अपने टालमटोल की आदत को रोकने के लिए एक विचित्र योजना बनाई। उन्होंने अपने सारे कपड़े एक दोस्त को देकर उसे एक बक्से के अंदर बंद करने को कहा। उनके पास पहनने के लिए 1 जोड़ी कपड़े के अलावा और नहीं थे। अब वह चाह करके भी बाहर नहीं जा पा रहे थे। मजबूरन उन्हें अपने स्टडी में ही रहने परा। परिणाम यह हुआ कि उन्होंने डेडलाइन के 2 हफ्ते पहले 14 जनवरी 1831 को ही बुक कंप्लीट कर दिया।
कोई भी व्यवहार परिवर्तन करने के लिए हम इसे आसान बना सकते हैं लेकिन जो व्यवहार हमें छोड़नी है उसे मुश्किल बना करके आसानी से छोड़ सकते हैं।
चौथा कदम: पुरस्कार को असन्तुष्टिदायक बनाए !
संतुष्टि दायक अंत की वजह से हम किसी व्यवहार को दोहराते हैं। असंतुष्टिदायक अंत की वजह से हम किसी व्यवहार से कतराते हैं। बुरी आदतों के मामले में दिक्कत यह है किस का अंत हमेशा short-term के लिए संतुष्टि दायक होते हैं। इसलिए हमें इसे बार-बार दोहराने का मन करता है।
वहीं पर दर्द यानी पेन एक बहुत अच्छा शिक्षक है। अगर असफलता दर्दनाक होते हैं तो इसे हम जल्दी सही करते हैं। अगर असफलता दर्द रहित होते हैं तो इसे हम नजरअंदाज कर देते हैं।
किसी व्यवहार में जितनी जल्दी pain होता है उस व्यवहार का होने की उतनी ही कम संभावना होती है। अगर हमें किसी बुरी आदत को रोकना है तो हम काम को ऐसा बना सकते हैं कि उसकी कीमत हमें तुरंत चुकानी पड़े।
सरकार, कंपनियां भी ऐसा ही करते हैं। जैसा कि समय पर बिल पेमेंट नहीं करने पर लेट फीस लगाया जाता है। जीएसटी की फाइलिंग मैं delay होने पर लेट फीस लगती है।
इसी तरह से हम बुरी आदत के परिणाम को असंतुष्टिदायक फिर पेनफुल बनाकर छोड़ सकते।
Conclusion
जितने भी बुरी आदतें हैं, ये हमें तुरंत मज़ा देते हैं। और Long-Term में जाकर यही हमारे लिए सज़ा बनती हैं। कोई भी आदत संकेत, लालसा, प्रतिक्रिया, पुरस्कार यही चार अवस्था से होकर बनती हैं। किसी भी बुरी आदत को हम संकेत को अस्पष्ट बनाकर, लालसा को अनाकर्षक बनाकर, प्रतिक्रिया को मुश्किल और पुरस्कार को असन्तुष्टिदायक बनाकर छोड़ सकते हैं।